नर्मदा का हर कंकर शंकर क्यों होता है?
पुरानो में कहा गया है की प्राचीन काल में नर्मदा नदी ने जब गंगा नदी के समान होने के लिए निश्चय किया और ब्रह्मा जी की तपस्या करने लगी क्योकि ब्रह्मा जी ही एक ऐसे देवता है जो वरदानो के लिए प्रसिद्ध है|किसी भी देवता या दानव को जब वरदान प्राप्त करना रहता था.
नर्मदा नदी का रहस्य
तो वे ब्रह्मा जी की ही तपस्या करते थे, इसलिए माँ नर्मदा ने भी ब्रह्मा जी की तपस्या की और ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया|तब ब्रह्मा जी ने नर्मदा से वरदान मागने को कहा, तब नर्मदा ने कहा की मुझे गंगा नदी के समान पाप नाशिनी तथा पूजनीय बना दीजिये , जिससे लोग मेरी पूजा अर्चना करे और मेरा नाम प्रख्यात हो तब ब्रह्मा जी ने कहा ,की इस संसार में एक समान कोई नहीं हो सकता है,
क्या भगवान विष्णु के समान कोई दूसरा पुरुष हो सकता है| क्या कोई दूसरा देवता भगवान शिव बराबरी कर सकता है| या देवी पार्वती के समान कोई दूसरी नारी हो सकती है नर्मदा जी ने ब्रह्मा जी की बात सुनकर वहा से चली गयी उसके बाद माँ नर्मदा ने भोले नाथ को प्रसन्न करने के लिए पिलपिला तीर्थ काशी पूरी में शिवलिंग की स्थापना की और तपस्या करने लगी.
तब भगवान शिव नर्मदा की तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए ,और वरदान मागने को कहा तब नर्मदा ने कहा की भगवान मुझे इतना ही वर दीजिये की आपके चरणों में मेरी भक्ति सदैव बनी रहे|नर्मदा की बात सुनकर भगवान शिव शंकर बहुत प्रसन्न हुए और कहाँ की नर्मदे तुम्हारे तल पर जितने भी कंकर है वो सभी शंकर हो जायेगे और तुम्हारे दर्शन मात्र से सम्पूर्ण पापो का नाश हो जायेगा.
इतना कह कर भगवान शंकर उसी लिंग में सदा के लिए लींन हो गये और माँ नर्मदा भी इतने वरदान और पवित्रता पाकर बहुत प्रसन्न हुई|तभी से नर्मदा के कंकर को शंकर के रूप में पूजा जाता है जिसे नर्मदेश्वर शिवलिंग के नाम से जानते है.
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